Movie: Welcome to Sajjanpur

probably you might have already watched the movie, some because of shyam benegal, some others (like me) because of talpade, and others because of some god forbidding forceful entity (again, like me) yelling at you – “go and watch it”, or “don’t go, but watch it”.
in any case, i believe that u believe that benegal believed that the movie was going to make at least few percent of his audience believe in the high end comical content in the movie, through low end, rustic dialogues. and though the movie hasn’t appealed to the masses, it has definitely led to a new sect of bollybhood mobheezz, which will try to mingle more and more bhojpuri and villagery into the heart of modern cinema.

—– some motivations from the movie itself —–

नोट: उधर प्रेम की कैंची है. लैटर राईटर: महादेव कुशवाहा (बी.ए. पास)

mahadev: अरे रे राम राम राम राम, वो इत्ती सी जान आपके इत्ते बड़े बेटे को नीचे गिराय के, उसके ऊपर बैठ गई, कित्ती बड़ी डायन है वो.

chadami ram: ये लो ताकत की दावा. हिमालय का असली शिलाजीत. घरवाली खुश रहेगा.
mahadev: नही नही मुझे इसकी जरूरत नही.
chadami (in a wondering tone): अच्छा, भोलेनाथ तुम्हारा मर्दानगी सलामत रखे.

teacher: मैंने मजाक मजाक में कह दिया की लेखक बनेगा तो यहाँ पे वात्स्यायन के कामसूत्र का प्रथम अध्याय लिखना शुरू कर दिया तूने. 

ramsingh: बैठिए मामाजी.
mamaji: हम तो बैठे ही हैं.

kamala: इंहा सब राजी खुशी है, गाय बियाई है, दूध बहुत होत है. तुम होते तो पीते. (my favourite)

mausi: वैसे तो पेड़ के संग या मटका के संग फेरा पड़ जात है तो अपसकुनी टल जात है, लेकिन इ बिटिया महामंग्लानी है, एकरे खातिर कोई अच्छा सा कुक्करे के संग ईका ब्याह करो जीकी पूछ आधी भूरी आधी काली, थोडी टेढी जरूर हो, तब उसके सर से अपसकुनी उतरेगा.

vindhya: हमका सब पता है तुम का गुन्ठाल खिला रही हो. का पुतली है रबर की, इधर खीचो, इधर चली जायें, उधर खीचो, उधर चली जायें.

subedar: अंधेर नगरी चौपट रजा, फ्रीफंडबाजी और फ्रीफंड खाजा.

some random chaupal guy: शादी, आबादी, बर्बादी, गाँधी. शादी, प्रेम, प्रेम कौन है. प्रेम सूबेदार साहब का दामाद है.

customer (dictating): कार से कैसे खेत जोतेंगे.
mahadev (writing): कार से खेत जोतेंगे.
customer: कैसे.
mahadev: ये तो आपको पता है भइया, हम कैसे…
customer: अबे लिख, कैसे.

mahadev: तू चुनाव में खड़ा हो रहा है?
munni bai: अरे खड़ा हो मेरे दुश्मनों का, मै तो खड़ी हो रही हूँ.

munni bai: इन मर्दों का दिमाग नाडे से ऊपर तो आता ही नही. चलो री रानियों चलो.

munni bai: अरे चौके ने खूब किया, अरे पंजे ने खूब किया, राज, कि आई अब मुन्नी की बारी.

mahadev: पर भइया रामचंदर जी ने कहा है कि कलयुग में तो हिजडों का ही राज होगा. (feared by ramsingh’s frown) हमने नही कहा है, रामचंदर जी ने कहा है.

ramsingh: लंडूरे से दिखते हो, पर बहुत अच्छा लिखते हो.

mausi: काहे बिटिया, तुम का इनके लिफाफे की चिट्ठी हो?

Leave a comment